आज ही की बात है, वही कुछ 9:30 – 9:35 हो रहे होंगे, मैं और मेरी roompartner अपने हॉस्टल के रसोई में सारी सामग्री के साथ पहुँचे। हम दोनों ही काफ़ी खुश थे, और हो भी क्यों न सेवईं पोहा जो बनाने जा रहे थे। ज्यों हम रसोई में पहुँचे, हमारे सामने ही एक लड़की भिंडी का भुजिया बनाकर निकली। अभी हमने मूँगफली ही भूनी थी, यूँ कह लो बनाना शुरू ही किया था की हॉस्टल की मालकिन, जिनकी व्याख्या करें तो उम्रदराज़, थोड़े छोटे कद की (माँ समान) बूढी औरत, अचानक आ गयी हालाँकि यह उनके आने का वक़्त नहीं था।
बिलकुल विनम्रता से, उम्र का लिहाज करते हुए, माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार “बड़ों की आदर करनी चाहिए” का ख्याल रखते हुए; “हाँ नोट के तौर पर एक बात और बता दूँ की मेरे संस्कार में यह भी है की गलत सुनने और शोषण सहने वाला भी गलती का बराबर का हक़दार होता है” , शिष्टाचार के अनुसार हमने उन्हें नमस्ते किया परन्तु उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया। हम फिर अपने काम में लग गए लेकिन वो आंटी वहीं मंडराती रहीं, रसोई के अंदर-बाहर अंदर-बाहर करती रहीं।
अचानक मेरे पास आकर कहती ; मेनू देखा है, मेरे बेटे ने तो तुम्हें दिखाया होगा न ? मैंने सोचा क्या हो गया, ये ऐसे क्यों पूछ रही है, खैर मैंने जबाब दिया; नहीं देखा है, मैंने माँगा था पर उन्होंने दिया नहीं अब तक। लगता है ऐसे जबाब की उम्मीद नहीं थी उन्हें और बेचारी उस (माँ समान) बूढी औरत को गुस्सा आ गया, चिल्लाती हुई कहती; नहीं देखा है तो निचे दो-दो जगह लगा है जाकर देख लेना। हमारी मेनू के साथ चलना है तो ठीक है वरना बाहर से ऑर्डर करो, ये सब हमारे यहाँ नहीं चलेगा। शायद मैं चुप-चाप सुन लेती तो बात यही खत्म हो जाती पर जो मेरी गलती नहीं तो भला मैं क्यों सुनूँ।
उम्र का लिहाज़ किये बिना मैंने भी झल्लाते हुए बोला, हमें भी कोई शौक नहीं है इतनी ठण्ड में खाना बनाने का। मेनू से तो हमने कोई दिक्कत ही नहीं जताई, यदि खाना अच्छा बने तो हमें बनाने की जरूरत ही न पड़े, (माँ समान) बूढी औरत बात को बीच में काटती हुई बोली; जो हमारा वर्कर बनाएगा वही खाना पड़ेगा, हमारे यहाँ यह सब नहीं चलेगा। हॉस्टल में और बच्चे भी तो खाते हैं, उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं होती सबसे ज्यादा आपत्ति तुम्हें ही है। तुम तीनों के अलावा कोई नहीं दीखता रसोई में। अब पानी सर से ऊपर चला गया, और मैं फिर से बोल पड़ी; हम पैसे देते हैं रहने और खाने के और आपके बेटे ने तो बहुत तारीफ की थी खाने की, मुझे उम्मीद नहीं थी की इतना घटिया खाना होगा। क्या बोला आपने “हम तीन” हम कभी-कभी चाय बनाने आ जाते हैं, मजबूर होकर क्या करें यहाँ की चाय जो इतनी घटिया है और आज पहली बार कुछ बनाने आये हैं। इसी बीच मेरी भोली-भाली roommate ने बोला, मैं तो कभी कुछ नहीं बनाती। अब तो हद ही हो गयी, (माँ समान) बूढी औरत ने झट से बोला; इसके साथ तो आती हो। बात बढ़ती ही जा रही थी, मैं फिर शुरू हो गयी, इतना ही कैमरा देखते हो तो ये नहीं देखा की मैं सुबह 8:20 पर आयी थी और बिना खाना लिए चली गयी थी क्योंकि आपके वर्कर तब तक आलू ही उबाल रहे थे। बीच में मेरी भोली-भाली roommate कहती कोई बात नहीं चुप हो जा यार, ठीक है आंटी हम कल से नहीं बनाएंगे, ‘हलाँकि हमारी कोई गलती नहीं थी, हम नियम का पालन कर रहे थे’, मैं फिर भी बोलती रही, मेरी दूध की थैली चोरी हो गयी, तब तो आपलोगों का ध्यान नहीं गया, उसका क्या ? उस (माँ समान) बूढी औरत के पास शायद कोई उत्तर नहीं रहा होगा, इसलिए जबाब में ऊँगली दिखाकर कहती अंकल बात करंगे तुमसे और वहाँ से चली गयी। सबसे रोमांचक बात, वहाँ दो मूक दर्शक भी थे, आंटी के दो अनमोल रत्न; दोनों वर्कर।
मैं क्या बना रही थी उस वक़्त खुद को समझ नहीं आ रहा था, गुस्से में बरबड़ा रही थी; “सब बत्तमीज़ हैं यहाँ, किसी के पास तमीज़ नहीं है, न मालिक के पास और न वर्कर के पास”, तभी वर्कर आकर पूछता है, क्या बत्तमीजी की है हमने और उसका इतना पूछना था की अंकल अंकल आ धमके। वही कुछ 70-80 सीढियाँ चढ़कर हाँफते हुए पहुँचे थे। वहां रखे मूँगफली की तरफ इशारा करते हुए पूछा “Is this yours” मैंने बोला “Yes”, उनका जबाब कुछ यूँ था “no cooking is allowed” मैं सोचने लगी हमें तो ऐसा नहीं बताया था। “Tomorrow, meet me in my office” मेरा इतना कहना था की “ok I will be there” और वो वहाँ से चले गए। हमने फिर जैसे-तैसे पोहा बनाया, पेट तो वसे ही भर गया था।
अगले दिन मुझे फ़ोन आता है, मैडम ऑफिस में आ जाइये। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की फ़ोन पर वही व्यक्ति है जो कल मेरे सामने था। हम ऑफिस में पहुँचे, बूढी औरत भी वही थी, अंकड़ तो अभी भी उसकी उतनी ही थी। कुछ वार्तालाप हुई हमारे बीच, निष्कर्ष यही रहा की तुम्हें खाना बनाने की अनुमति नहीं है। अब मुझे यह नहीं पता की सिर्फ हमें नहीं है या किसी को नहीं है।
हम उनकी मीठी बातें सुनकर वापस चले आये। मैंने आते ही एक केटल आर्डर कर लिया, परन्तु मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया की हमारी गलती क्या थी। शायद कोई वक्तिगत समस्या रही होगी हमसे।
वैसे उस दिन खाने में दाल-मखनी थी जो मुझे पसंद है। वाक़ई में खाना अच्छा नहीं होगा तभी मैंने नहीं खाया। और वो पहली और आखिरी ही बार था जब हमने उस हॉस्टल की रसोई में खाना बनाया था।