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लघु कथा

इश्क़ : एक खूबसूरत एहसास

इश्क़ वो नहीं जो कहीं भी, कभी भी, किसी से भी, कुछ वक़्त के लिए हो जाए। इश्क़ उसमें नहीं जो बार, पब, और डिस्को में नजर आये। इश्क़ वैसा भी बिलकुल नहीं है जो हम राह चलते सड़क, मोटरसाईकल और कार में देखते हैं।

दरअसल इश्क़ का तो कोई रूप ही नहीं, फिर भला हम इश्क़ को देख कैसे सकते हैं। फिर इश्क़ है क्या ?

इश्क़ एक एहसास है। इश्क़ वो अनोखा एहसास है, जो कभी आँखों में दीखता है तो कभी धड़कन के साथ धड़कता है। यह किसी से बार-बार नहीं होता, और जो एक बार जो हो जाता है तो बस हो ही जाता है। फिर इससे खूबसूरत शायद ही कोई एहसास होगा।

ऐसा एहसास जो अगर करीब हो तो आँखों में महफूज़ हो और दूर हो तो ख्वाबो-ख्यालों में।
ऐसा एहसास जो अगर तुम खुश हो तो उस एक में ही सारी जहाँ नज़र आये और जो कोई नाराज़ हो तो सारी जहाँ में बस एक वो ही नज़र आये। बेशक हम स्वयं उसे कितना भी बुरा-भला कह दे पर जो कोई और कह दे तो सहा न जाये।इश्क़ तो वो है जो अगर हो ख़फ़ा एक-दूजे से फिर भी एक-दूसरे के लिए सारी दुनिया से बगावत कर जाये।

ये तो वो एहसास है जो अगर कितने भी खफ़ा हो तो जहन में बस यही बात आये ” जानेमन एक बार आकर कह दो, की हो गया अब मान जाते हैं ” और फिर वो ही पुरानी हसीन शाम आये। ये वो एहसास है जो कभी खत्म न हो पाए।

ये इश्क़ तो इतना हसीन है, जिसे सोचने भर से ख़्याल भी हसीन हो जाये।

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