Categories
कविता

तन्हापन

जो नीर बहे थे तन्हापन में
एक ज्वाला थी मेरे तन मन में
बेबाक मोहब्बत सरे आम किया था
फिर क्यूँ तुमने हमें नीलाम किया था
जो कभी अज़नबी थे वो भी तुम्हारे क़रीब हो गए
भला हम क्यों इतने बदनसीब हो गए
प्यार की भी अब इंतेहा हो गयी
दूरियाँ कुछ यूँ हमारे दरमियाँ हो गयी
की हर रोज़ तुम्हारे नाम इक पैग़ाम लिखते थे
सोच कर ये की तुम खफ़ा न हो जाओ, उसे बंद पन्नों में ही मसरूफ़ रखते थे
ऐसी नौबत आ गयी कि तुम अब छुपकर मुस्कुराने लगे
हर छोटी चीज़ भी हमसे छुपाने लगे
बेवफ़ा तो हम हरगिज़ न थे, फिर भी तुम हमसे इतनी दूरियाँ बनाने लगे।।

16 replies on “तन्हापन”

Leave a Reply