Categories
कविता

बेबसी

कहकशें के रस्ते में अकेली भटक रही थी

बेबस और लाचार मैं बहुत तड़प रही थी

वक्त का सिलसिला चलता जा रहा था

कोई रहनुमा न नजर आ रहा था

मैं अकेली तन्हापन में

बातें करती मन ही मन में

ऐ ख़ुदा एक मौका दे दे

कोई फ़रिश्ता तोहफ़ा दे दे

किसको बताऊँ अपने ग़म का सबब मैं

सहती रही हर ज़ुल्म-ओ-सितम मैं

तलब थी उसके रूह में बस जाने की

बेबाक़ उसके ज़िस्म को छू जाने की

न मिटी प्यास न मिटा तलब

न मिली मोहब्बत न मिला ज़िस्म

अनजान परेशान मैं भटक रही थी

क़भी सहम रही थी क़भी तड़प रही थी

न जहन्नुम में जगह थी न ज़न्नत मिल रही थी

किसी मझधार में मेरी कश्ती डूब रही

ऐ ख़ुदा इक रहम बख़्स दे

इस डूबती कश्ती को कोई किनारा दे दे

मुझ बेबस को कोई सहारा दे दे।।

13 replies on “बेबसी”

Leave a Reply