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कविता

मेरा एक ही संसार है

मेरा एक ही संसार है,
उससे प्रेम बेसुमार है।
बस एक उस पुष्प से,
मेरी ज़िंदगी गुलज़ार है।
मेरा एक ही संसार है,
उससे प्रेम बेसुमार है।

इस प्रेमी प्रेमिका का है ऐसा अटूट बन्धन,
जैसे हो किसी सुहागन के हाथ का कंगन ।
उसकी एक खुशी के लिए, मेरी सारी खुशियाँ कुर्बान है।
मेरा एक ही संसार है,
उससे प्रेम बेसुमार है।

उसके काया, रूह और रोम-रोम में सिर्फ बसा है प्रीत,
हर ख्वाब समर्पित कर बस उसको जाऊँ मैं जीत।
वो कृष्ण का अवतार है,
किसी राधा का प्यार है।
मेरा एक ही संसार है,
उससे प्रेम बेसुमार है।

उसकी नैनो से दुनिया देखूँ, उससे ही तो जन्नत है।
निष्ठा और निवेदन से, जो मांगी ये वो मन्नत है।
उसमें जीने की खातिर, मुझे हर यातना स्वीकार है।
मेरा एक ही संसार है,
उससे प्रेम बेसुमार है।।

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