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कविता

मेरी किस्मत…

जिसके साथ होने से मैं सो नहीं पाती,
उसके साथ होने से तुम्हें सूकून की नींद आती।

जिसके जाने से मुझे चैन आता,
उसके जाने से तुम बेचैन हो जाती।

तुम्हारे दो लब्ज के लिए हम तड़प जाते,
और उसके दो लब्ज से तुम्हें जान आती।

किस्मत भी अजीब है,
मुझे ऐसे लोगों से मिलाती,
जिसके सांस से मेरी जान आती,
जिसके लब्ज से मेरी जुबान आती,
जिसके जिस्म से मेरी पहचान आती….
पर काश की ऐ-खुदा ..
ये बात वो समझ पाती,
क्यों इन बातों से वो अनजान रह जाती…
क्यों नहीं वो मेरे जज्बात समझ पाती।

काश की वो मेरी हो जाती…
काश की वो मेरी हो जाती!!

13 replies on “मेरी किस्मत…”

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