Categories
कविता

ऐसे होते हैं पिता

आज फिर से मेरे पिता के साथ वाला बचपन याद आया है,
बेटी हूँ कभी उन्होंने ये महसूस नहीं होने दिया।
हमेशा बेटे की तरह दुनिया दिखाया,
सबसे लड़कर पढ़ाया-लिखाया,
अपने पैरों पर चलना सिखाया।
जब भी रूठी मैं, उन्होंने प्यार से मनाया,
बाहर से बेशक सख्त पर भीतर से हमेशा उन्हें नर्म ही पाया,
कुदरत की मेहरबानी उन्होंने ऐसा पिता बनाया।

कभी परीक्षा की तयारी करवाते,
कभी दुनियादारी और घर की जिम्मेदारी समझाते हैं।
हर कदम फूँक-फूँक कर चलना सिखाते,
कभी कहानियों से बताते तो कभी उदहारण दिखाते हैं।
ज़िन्दगी में आने वाली हर परेशानियां बताते,
जाने कहाँ से हर परेशानियों का हल ढूंढ कर लाते हैं।
मेरी हर असफलता पर मेरा हौसला बढ़ाते,
किश्मत वालों को ही ऐसे पिता मिल पाते हैं।

जब घर में माँ नहीं तब वो माँ का रूप हैं,
अनुशासन उनसे बना, वो ही छाँव और धूप हैं।
कभी कांधे पे बिठाया, कभी साईकल से घुमाया,
जो फटकार कर समझाए, कभी-कभी चॉकलेट भी खिलाए,
ये पिता एक अद्भुत स्वरुप है।

कभी बेटी समझकर शासन चलाते हैं,
कभी हमउम्र की तरह सबकुछ बताते हैं।
ये पिता ही हैं जो हमारी ख़ामोशी भी समझ जाते हैं,
सबकुछ जान कर भी कभी-कभी अनजान बन जाते हैं।
होठों पे हँसी होती है और सीने में दर्द छुपाते हैं,
कभी हमारी जिद्द, कभी माँ की परेशानी,
कभी समाज के ताने, कभी हमारे झूठे बहाने,
इन्हीं के बीच अपनी ज़िंदगी बिताते हैं।
ऐसे होते हैं हमारे कठोर पिता जो अपने अंदर की भावनाओं को छुपाते हैं।
इसलिए मेरे पिता भगवान से भी पहले आते हैं।

14 replies on “ऐसे होते हैं पिता”

जिसने तुम्हारी जीत के लिए सब कुछ हारा है:- पिता। Aacha likh rahi

Leave a Reply