Categories
कविता

गर्भस्थ गज : हत्या या देहांत

रखा फल खेतों में लोगों ने,
जंगली सूअर से खेत बचाने को,
नहीं खिलाया किसी ने फल,
उस गर्भस्थ गज को तड़पाने को।

तरस आती है उस मीडिया पर,
जो बस टी. आर. पी. पर मरता है,
गलत खबर फैलने को,
जाने कौन घूस भरता है।

बदनाम किया केरल को,
और मानवता भी बदनाम हुई,
भावनाओं से खेल, छापी उसने ऐसी खबर,
जो रातों- रात सरे-आम हुई।

क्या बिगाड़ा था उस मानुष ने,
जो बेवजह उसे फसाया,
घटी जो घटना चार दिन पहले,
क्यों मीडिया को देर याद आया।

जगह का नाम तो गलत था ही,
उसने बात भी हेर-फेर कर बताया,
जाने इस घटना को सुर्ख़ियों में ला,
उसने कौन सा और खबर दबाया।

रखा फल खेतों में लोगों ने,
जंगली सूअर से खेत बचाने को,
नहीं खिलाया किसी ने फल,
उस गर्भस्थ गज को तड़पाने को।

भावुक हो रहे भले मानुष,
कभी पशु-फार्म भी होकर आओ,
उनका दर्द भी महसूस करो,
उनपर भी कुछ कविता सुनाओ।

क्यों नहीं बताती मीडिया,
जब जानवर ज़िंदा जलाये जाते हैं,
जब ज़िंदा जानवर के ही,
बेदर्दी से चमड़ी हटाए जाते हैं।

क्यों नहीं बताती मीडिया,
एक बेगुनाह गर्भवती तड़प रही है जेल में,
क्यों छुपा रही है मीडिया,
उन मज़दूरों की कहानी, जो तड़प रहा है रेल में।

तुम भी लिखो न कविता उस हर अंडे के लिए,
जिसमें एक चूज़ा पलता है,
लिखो न उस जानवर के लिए भी,
जो हर रोज़ किसी के घर, में पकता है।

मानवता को बस हाथी से मत तोलो,
जब भेद करते हो जाती और धर्म में,
तब भी ज़रा मानवता की बात बोलो,
जब करते हो अत्याचार दलित और नारी पर,
कभी तब भी मानवता का पिटारा खोलो।

मत दिखाओ गलत खबरें,
लोग तुम पर विश्वास करते है,
कुछ तो मानवता दिखाओ, सही खबर बताओ,
लोग तुम्हारी ही दिखायी गयी राह पर चलते हैं।

26 replies on “गर्भस्थ गज : हत्या या देहांत”

Leave a Reply