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कविता

घूँघट की ओट से

इश्क़ करूँगी घूँघट की ओट से,
चाहे पीड़ित रहूँ दिल पे लगे चोट से,
तुम क्या ख़ाक समझ पाओगे मुझे,
दर्द है मेरे दिल मे, खुशी है बस होठ पे।

अपने जज़्बात मैं सबसे छुपाउंगी,
मन ही मन बस तुमको ही चाहूँगी
राधा ना सही,
मीरा बन जाऊँगी।

होगी तुम्हारे लिए बहुत राधा जैसी,

इश्क़ करूँगी घूँघट की ओट से,
चाहे पीड़ित रहूँ दिल पे लगे चोट से,
तुम क्या ख़ाक समझ पाओगे मुझे,
दर्द है मेरे दिल मे, खुशी है बस होठ पे।

अपने जज़्बात मैं सबसे छुपाउंगी,
मन ही मन बस तुमको ही चाहूँगी
राधा ना सही,
मीरा बन जाऊँगी।

होगी तुम्हारे लिए बहुत राधा जैसी,
नहीं मिलेगी मेरे जैसी कोई प्रेयसी,
मैं रहूँ या ना रहूँ,
रहे तेरे होठो पर हमेशा हंसी,
विनती में ईश्वर से बस इतना मांगू,
मिले तुम्हें जहां की सारी खुशी।

जब टूटेंगे वदन और आँखे होंगी नम,
आएगी मेरी याद तुम्हें हर क्षण,
बनानी पड़ेगी जब स्वयं दो रोटी,
पुनः माँगोगे मुझे अगले जनम।

अभी तुम मेरी अहमियत से अनजान हो,
तबियत से थोड़े नादान हो,
आओगे एक दिन जरूर लौटकर,
पर शायद वो मेरी आखिरी शाम हो।।

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