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कविता

सिकंदर कौन

टूटा हुआ शख़्स अक़सर हार जाता है,
जो हँसता हुआ जीता है, वो सिकंदर कहलाता है।

कभी गम का सैलाब, तो कभी कुचलता ख़्वाब देखा है,
देखा है लोगों की आँखों में दर्द,
दर्द-ए-दिल, होठों पे हंसी वाला अंदाज भी देखा है।

गुजर जाती है ज़िन्दगी किसी की एक ख़्वाब में,
कहीं एक लम्हा भी नहीं कटता किसी की याद में,
सबके दिल में एक तन्हाई पलती है,
कोई हँसता हुआ चला जाता है,
कोई अक्खा ज़िंदगी रोता है इस तन्हाई के आड़ में।

इस छोटी सी ज़िंदगी में मैंने बहुत कुछ देखा है,
किसी को अपनी ख़ुशी से परेशान,
तो किसी को ग़म में भी मुस्कुराते देखा है।
कभी लोगों को जज़्बातों में बहता हुआ,
तो कुछ लोगों को अपने जज़्बात छुपाते देखा है।
देखा है हर किसी की आँखों में सपना,
किसी में उसे मुकम्मल करने की चाहत,
तो किसी को ज़िंदगी से हार जाते देखा है।

टूटी मैं भी बार-बार हूँ, पर हर बार खुद को टूटने से रोका है,
क्योंकि मैंने ज़िंदगी को बहुत क़रीब से देखा है,
हाँ, मैंने इस ज़िंदगी से हर पल बहुत कुछ सीखा है।
टूटा हुआ शख़्स अक़सर हार जाता है,
जो हँसता हुआ जीता है, वो सिकंदर कहलाता है।

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