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कविता

वियोग से क्षुब्ध नैन

मेरे दो अनूप नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

पकड़े कामना की डोरी,
रजनी में रोती चोरी-चोरी।
वियोग से क्षुब्ध मेरे नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

मेरे दो अनूप नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

सयोंग धीरज हर वार,
करती है तुम्हारा इंतजार।
प्रीत में पर गए मेरे नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

अधर पर अब बस एक ही बात,
लौट आओ अब मेरे पास।
रुदन करते मेरे नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

प्यासी काया निर्मित माया,
इनपर किसने बस पाया।
मेरे दो चंचल नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

पकड़े कामना की डोरी,
रजनी में रोती चोरी-चोरी।
वियोग से क्षुब्ध मेरे नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

काटे नहीं कटते एक भी रैन,
पीड़ा में हैं मेरे नैन।
वियोग से क्षुब्ध मेरे नैन,
वेदना से हो रहे बेचैन।

13 replies on “वियोग से क्षुब्ध नैन”

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