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कविता

वाह मोदी जी वाह

आग लगी है बस्ती में,
मोदी जी हैं मस्ती में।

भारत आ गया है सड़क पर,
उन्हें उससे क्या फर्क पर।

हमारी ही रोटी खाते हैं,
और हमें ही रौब दिखाते।

करोड़ो की प्रतिमाएं बनवाते हैं, दीप जलवाते हैं,
धर्म के नाम पर देश चलाते हैं।

और अंधभक्तों के क्या कहने,
ऐसे लपेटे में आते हैं,
कुत्तों की तरह वफादारी निभाते हैं,
बंद आँखों से जुमले देख,
उसी को गद्दी पर बिठाते हैं,
वापिस वही सरकार बनाते हैं।

26 replies on “वाह मोदी जी वाह”

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